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विश्वा॑नि श॒क्रो नर्या॑णि वि॒द्वान॒पो रि॑रेच॒ सखि॑भि॒र्निका॑मैः। अश्मा॑नं चि॒द्ये बि॑भि॒दुर्वचो॑भिर्व्र॒जं गोम॑न्तमु॒शिजो॒ वि व॑व्रुः ॥६॥

English Transliteration

viśvāni śakro naryāṇi vidvān apo rireca sakhibhir nikāmaiḥ | aśmānaṁ cid ye bibhidur vacobhir vrajaṁ gomantam uśijo vi vavruḥ ||

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Pad Path

विश्वा॑नि। श॒क्रः। नर्या॑णि। वि॒द्वान्। अ॒पः। रि॒रे॒च॒। सखि॑ऽभिः। निऽका॑मैः। अश्मा॑नम्। चि॒त्। ये। बि॒भि॒दुः। वचः॑ऽभिः। व्र॒जम्। गोऽम॑न्तम्। उ॒शिजः॑। वि। व॒व्रु॒रिति॑ वव्रुः ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:16» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (ये) जो पवन (अश्मानम्) जैसे मेघ को (चित्) वैसे (बिभिदुः) विदीर्ण करते हैं (गोमन्तम्) बहुत गौओं से युक्त (व्रजम्) गौओं के स्थान की (उशिजः) कामना करते हुओं के समान न्याय को (वि, वव्रुः) अस्वीकार करते हैं, उन (निकामैः) नित्य कामनावाले (सखिभिः) मित्रों के साथ जो (शक्रः) सामर्थ्यवाला (विद्वान्) विद्वान् (विश्वानि) सम्पूर्ण (नर्याणि) मनुष्यों में उत्तम (अपः) कर्मों को (वचोभिः) वचनों से (रिरेच) पृथक् करता है, वही पृथिवी के भोगने के योग्य है ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। सूर्य्य जैसे मेघ का वैसे दुष्टों के निवारण करनेवाले वा गोपाल लोग जैसे व्रज अर्थात् गौओं के बाड़े से गौओं को वैसे अन्याय से पृथक् करनेवाले जिस पुरुष के मित्र होवें, वह मनुष्य राजा होने के योग्य है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ये वायवोऽश्मानं चिदिव बिभिदुर्गोमन्तं व्रजमुशिज इव न्यायं वि वव्रुस्तैर्निकामैः सखिभिः सह यः शक्रो विद्वान् विश्वानि नर्याण्यपो वचोभी रिरेच स एव पृथिवीं भोक्तुमर्हति ॥६॥

Word-Meaning: - (विश्वानि) सर्वाणि (शक्रः) शक्तिमान् (नर्याणि) नृषु साधूनि (विद्वान्) (अपः) कर्म्माणि (रिरेच) रिणक्ति (सखिभिः) मित्रैः (निकामैः) नित्यः कामो येषान्तैः (अश्मानम्) मेघम् (चित्) इव (ये) (बिभिदुः) भिन्दन्ति (वचोभिः) वचनैः (व्रजम्) (गोमन्तम्) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यस्मिंस्तम् (उशिजः) कामयमानाः (वि) (वव्रुः) ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। सूर्य्यो मेघमिव दुष्टनिवारका गोपाला व्रजाद् गा इवाऽन्यायाद् विमोचयितारः सखायो यस्य भवेयुः स नरो भूपतिर्भवितुमर्हति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमावाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. सूर्य जसा मेघ दूर करतो तसे दुष्टांचे निवारण करणारे व गोपाल जसे गोठ्यातून गाई बाहेर काढतो तसा अन्याय दूर करणारे, ज्या पुरुषाचे मित्र असतील तो माणूस राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ ६ ॥